अमृतसर 10 दिसंबर (राजिंदर धानिक) : पंजाब के पूर्व डिप्टी स्पीकर प्रो. दरबारी लाल ने कहा कि किसान अपनी जायज, उचित और न्यायसंगत मांगों को मनवाने के लिए पिछले कई दिनों से सर्दी के मौसम में दिल्ली सीमा के ईद-गिर्द डेरा डाले हुए है और सरकार किसी न किसी बहाने मसले को टालती जा रही है। जिससे किसान ही नहीं बल्कि समूचे देश के लोगों के लिए अति परेशानी का सबब बना चुका है। अन्नदाता को इस तरह की स्वतंत्र भारत में परेशानी आएगी यह कभी कोई सोच भी नहीं सकता है। आखिर सरकार क्यों इतनी बजिद्द बनी हुई है। जो समस्या का समाधान निकालने में देरी कर रही है। जैसे जैसे समय गुजरता जाएगा हालात किसी भी समय नियंत्रण से बाहर हो सकते है। एक तरफ सीमाओं पर भारत की सेना चीन और पाकिस्तान के आमने सामने खड़ी है और दूसरी तरफ घर के अंदर यह नई परेशानी पैदा करना कोई विवेकपूर्ण कदम नहीं है।
प्रो. लाल ने कहा कि प्राचीनकाल से ही अन्नदाता को समाज में सर्वश्रेष्ठ स्थान से नवाजा गया है, बाकि चीजों के बिना जिदंगी कट सकती है, परंतु अनाज के बिना जीवन काटना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुनकिन है। श्री कृष्ण महाराज ने अन्नदाता के महत्वपूर्ण योगदान पर कहा था कि राजा तो प्रजा पालक होता है, परंतु अन्नदाता समूची मानवता का पालनहार है। इसलिए उसे सभी स्थानों पर अत्याधिक मान और सम्मान प्रदान किया जाता है। पवित्र वेदों में भी कृषि को ही महत्व दिया गया है और श्री गुरू नानक देव जी ने भी जीवन के आखिरी समय में श्री करतारपुर साहिब में खेतीबाड़ी करने में जीवन बसर किया था। इससे स्पष्ट है कि भारत में इस क्षेत्र का कितना ज्यादा महत्व है।
प्रो. लाल ने कहा कि जब कारपोरेट सेक्टर गेहूं, चावल, तेल, दाले, तिल्हन, प्याज और आलू और अन्य चीजें खरीदकर स्टोर कर लेंगे तो महंगी होने पर बेचेंगे जिससे जनसाधरण पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ेगा। जो आटा 25 रूपए किलो मिल रहा है यदि इन कानूनों को रद्द न किया गया तो समय आने पर यह 100 रूपए किलो के करीब पहुंच जाएगा। केंद्र सरकार इन बड़े-बड़े घराने जिनमें अंबानी-अडानी और अन्य है केवल उनको मालामाल करने में क्यों इतना जोर लगा रही है। जबकि किसानों की खुशहाली से ही राष्ट्र खुशहाल हो सकता है। कारपोरेट सेक्टर तो मालामाल हो जाएगा, परंतु आम लोग महंगाई की चक्की में पिस जाएंगे, इसलिए याद रखो कि इन कृषि कानूनों का केवल किसानों पर ही नहीं बुरा असर पडेगा बल्कि आम भारतीय को जमाखोरी, कालाबाजारी और महंगाई का सामना करना पड़ेगा। सरकार स्वतंत्र किसानों को कारपोरेट सेक्टर के हाथों बंदवुआं मजदूर बनाना चाहती है, जिसे किसान किसी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। वर्तमान मंडियों के बराबर मंडियां बनाना कौन सी अकलमंदी है। साहूकारों और किसानों के बीच होने वाला करारनामा उन्हें कोर्टों के लंबे चक्कर में फंसा देगा, जहां फैसला लेना अति मुश्किल है।
प्रो. लाल ने कहा कि इन कानूनों के कारण आम भारतीयों के जीवन पर पड़ते हुए दुष्प्रभाव को देखते हुए यह अति आवश्यक है कि सभी व्यापारिक, उद्योगपति और सामाजिक संगठन इन कानूनों को रद्द करने के लिए प्रस्ताव पास करके सरकार के पास भेजें, ताकि सरकार इन काले कानूनों को वापिस ले और किसान अपने घरों में वापिस आकर शांतपूर्ण जिदंगी बसर कर सके। इस अवसर पर किसान नेता राजा बरिंदर दयाल सिंह, भगत प्रहलाद, वैष्णों दास, कर्णवीर वर्मा, एडवोकेट सौरभ अरोड़ा, सुनील कपूर, रवि चैधरी, नवदीप शर्मा और जनकराज लाली आदि मौजूद थे।