कृषि कानूनों से लोग महंगाई की चक्की में बुरी तरह पीस जाएंगे: प्रो. लाल

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अमृतसर 6 फरवरी (राजिंदर धानिक) : पंजाब के पूर्व डिप्टी स्पीकर प्रो. दरबारी लाल के निवास स्थान ग्रीन एवेन्यू में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई गई। जिसमें भारत के कृषि मंत्री तोमर के बयान की आखिर कानूनों में काला क्या है पर बड़े विस्तारपूर्वक विचार विमर्श करने के बाद सर्वसम्मति से कृषि कानूनों को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया गया। प्रो. लाल ने कृषि मंत्री के बयान पर सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त करते कहा कि तीनों ही कृषि कानून अत्याधिक काले है, किसानों को कारपोरेट घरानों के गुलाम बनाने वाले है और महंगाई को जन्म देने वाले है। जो मध्यवर्ग के लिए जीना दुश्वार कर देंगे और गरीब लोग रोटी-रोजी के लिए तरसेंगे। इन कानूनों के लिए न तो विपक्ष ने संसद के अंदर कभी मांग की और न ही किसानों ने इसके लिए कभी आंदोलन चलाया और न ही भारत के किसी प्रसिद्ध अर्थशास्त्रीय और नीति निर्माता ने ऐसा कोई सुझाव दिया। आजादी के बाद 74 वर्षों में यह पहला कानून बनाया गया है जिसकी किसी ने मांग नहीं की और जबरदस्ती किसानों पर थोप कर उन्हें परेशान किया जा रहा है।
प्रो. लाल ने कहा कि पंजाब में ही वर्तमान मंडी प्रणाली खत्म हो जाएगी। पंजाब सरकार को हर वर्ष 5 हजार करोड़ रूपए से अधिक आमदन होती है, जिससे गांवों की सड़के और अन्य सहुलते मुहैया की जाती है। गांव का विकास पूरी तरह रूक जाएंगा। सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारी बेकार हो जाएंगे। आढ़तीयों का काम भी खत्म हो जाएगा। इकरारनामे से कारपोरेट घराने किसानों की जमीन के मालिक बन जाएंगे और वह उस पर कर्ज भी ले सकेंगे। इससे किसान को अपनी जमीन वापिस लेना अत्याधिक मुश्किल हो जाएगा। ढाई तीन किले जमीन वाला किसान इन बड़े घरानों का कोर्ट-कचहरियों में मुकाबला नहीं कर सकेगा, एक बार यदि केस कोर्ट में चला गया तो किसान की सारी जिदंगी कोर्ट में भी गुजर जाएगी। हकीकत में यह प्रणाली किसान विरोधी है।
प्रो. लाल ने कहा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल के समय 1955 में जमाखोरी, काला बाजारी और महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार ने आवश्यक वस्तु कानून बनाया था। जिसके अनुसार गेहूं, चावल, तेल, दाले, आलू और प्याज की जमाखोरी करने वाले के गोदाम के ताले तोड़कर चीजों को ठीक दाम पर लोगों को बेच दिया जाता था। नए कानून के अनुसार अब किसी भी जमाखोरी करने वाले के गोदाम को सरकार हाथ भी नहीं लगा सकेगी। इस कानून को खत्म करना ही सरकार की साहूकारों के साथ मिलीभुगत है और गरीबों की जिदंगियों से बहुत बड़ा खिलवाड़ है। वास्तव में यह तीनों कानून कालख से भरे हुए है और कृषि मंत्री जानबूझकर लोगों को गुमराह कर रहे है। यदि यह कानून ठीक है तो फिर किसान पिछले 70 दिनों से सर्दी के मौसम में दिल्ली की सड़कों पर क्यों बैठे हुए है। यह आंदोलन केवल और केवल किसान चला रहे है। किसी भी राजनीतिक दल का भारी समर्थन अगर शुरू हुआ तो बहुत बाद में जाकर सरकार राजनीतिक दलों को कोसने की बजाए किसानों का मसला तुरंत हल करे। क्योंकि अब तो दूसरे देशों के लोग भी किसानों के हित में अपनी राय दे रहे है।
प्रो. लाल ने कहा कि हर चीज को हल करने का एक समय होता है, सरकार विवेक से काम ले और किसानों की समस्याओं का अकलमंदी से हल करे। ताकि वह वापिस आकर खेतों में काम करके देश के लिए अनाज पैदा कर सके। भारत हमेशा ही अपने अन्नदाता का शुक्रगुजार है, जिसकी कड़ी मेहनत के कारण अन्न के मामले में हम अपने पांव पर खड़े हो गए। इस अवसर पर राजा बरिंदर दयाल, भगत प्रहलाद, रमन कुमार, सुनील कपूर, अश्वनी कुमार, नवदीप शर्मा, जनकराज लाली आदि मौजूद थे।

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