अमृतसर 26 अप्रैल (पवित्र जोत) : मासूम बच्चों के लिंग के अगले भाग की चमड़ी की जुड़ने की अवस्था को फाइमोसिस कहा जाता है आमतौर पर तकरीबन 90% बच्चों को यह चमड़ी (जिसको प्रिपीयूस या खलड़ी कहा जाता है) कुदरती तौर पर जुड़ी हुई होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे 3 से 4 साल की आयु तक चमड़ी खुलने लग जाती है। कुदरती तौर पर चमड़ी के खुलने की प्रक्रिया दौरान कभी-कभी चमड़ी और लिंग के बीच में पुट्टी जैसा सफेद पदार्थ जमा हो जाता है। ज्यादातर लोग इसको मुयाद या विरज समझ कर डर जाते हैं असल में यह चमड़ी की झड़ती हुई कोशिकाओं से बना होता है जिसको स्मेगमा कहा जाता है । कभी भी स्मैग्मा या डिटॉल या कुछ और दवाई नहीं लगानी चाहिए किसी भी हालत में चमड़ी को जोर लगाकर खोलने की कोशिश ना की जाए। ऐसा करने से सूजन आने के कारण चमड़ी ज्यादातर गंभीर रूप से जुड़ सकती है।
फाइमोसिस बीमारी की जानकारी संबंधी बच्चों के माही डॉक्टर एसपी सिंह मिगलानी के साथ बातचीत की गई। डॉक्टर मिगलानी ने कहा कि कुछ समय पहले फाइमोसिस के लिए ऑपरेशन करवाने की राय दी जाती थी लेकिन आजकल कुछ ऐसी दवाइयां उपलब्ध है जिसे लगभग 80% बच्चों को सिर्फ दवाइयों से ही ठीक कर के ऑपरेशन से बचाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए एक तजुर्बे कार बच्चों के सर्जन की राय लेना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगर फाइमोसिस के कारण बच्चों को कोई मुश्किल आ रही है तो ऑपरेशन करके भी जुड़ी हुई चमड़ी को सावधानी के साथ कट कर दिया जाता है। इससे बच्चे के लिंग का बाहरी स्थाई रूप से खुल जाता है और उसको पेशाब करने संबंधित कोई भी मुश्किल नहीं आती है। यह ऑपरेशन डे केयर सर्जरी के रूप में भी किया जाता है। बच्चे को ऑपरेशन के कुछ घंटे बाद ही छुट्टी देकर घर भेज दिया जाता है।
मिगलानी अस्पताल बटाला रोड अमृतसर के डॉक्टर में गिलानी ने बताया कि फाइमोसिस के लक्षणों में पेशाब दौरान जलन या मवाद का आना लिंग के अगले हिस्से में सूजन या खारिश होना , पेशाब करते समय चमड़ी का फूलना, बूंद बूंद करके पेशाब का गिरना मुख्य लक्षण है। फाइमोसिस छोटी आयु में इलाज ना करवाने की सूरत में कभी-कभी आयु ज्यादा भरने के साथ कैंसर जैसी बीमारी का भी सामना करना पड़ सकता है। डॉ मिगलानी ने कहा कि मासूम बच्चों को पेशाब या लिंग संबंधी कोई मुश्किल है तो माहिर सर्जन के साथ संपर्क करना जरूरी है।